

पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर ए0 आर0 डंगवाल ने कहा कि आजादी के 73 साल बाद भी हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बनाया जा सका, यह दुर्भाग्य की बात है। हिंदी के नाम पर हिंदी दिवस मनाना औपचारिकता मात्र है, क्योंकि देश में हिंदी राजनीति की शिकार है। आज कई मौकों पे हिंदीभाषी भी हिंदी का प्रयोग करने में खुद को हीन भावना से महसूस करता हैं, जिससे बाहर आने की आवश्यकता है। कुलसचिव ए0 के0 झा ने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए मंच से ही कई निर्देश दिए, और कहा कि हिंदी पखवाड़ा समारोह के सभी कार्यक्रमों को विश्वविद्यालय की सोशल मीडिया साइट पर अपलोड किया जाए और उन्होंने विश्वविद्यालय के सभी सूचनाओं और बोर्ड को हिंदी में लिखने के निर्देश दिए।
इस मौके पर मुख्य वक्ता डॉ0 उमा मैथाणी ने हिंदी की महत्ता व वैचारिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए हिंदी को व्यवहारिक रूप से अपनाने की बात कही। कुलपति प्रोफेसर एस0 सी0 बागड़ी ने भी हिंदी के वैश्विक प्रभाव को अपने अनुभव के साथ साझा किया और हिंदी को संस्कारों की भाषा बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो0 प्यार सिंह राणा ने सभी अतिथियों का धन्यवाद करते हुए हिंदी पखवाड़ा समारोह के लिए शुभकामनाएं दी और कहा कि हिंदी को राजभाषा बनाने के लिए सब का योगदान होना चाहिए। इस मौके पर डॉ0 अनूप सेमवाल, डॉ0 गरिमा डिमरी, डॉ0 पूनम शर्मा, डॉ0 प्रियंका घिल्डियाल, डॉ0 सावित्री रावत, डॉ0 सविता मैठाणी आदि शोध-शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।