जिला अस्पताल गोपेश्वर में पुलिस द्वारा जाँच के लिए लाये एक कैदी को देख कर रचित कविता साझा की गयी है ।।
कवियत्री द्वारा वर्णित दृश्य:
शीर्षक: वो कैदी
कवियत्री: नीलम डिमरी, देवलधार, गोपेश्वर
स्थान: गोपेश्वर
वो इंसानों की भीड़ को,
चीरता, फांदता तो क्या होता,
तितर बितर सब हवा से,
वहाँ पर न थम सके।।
जहाँ उसका ठहराव था,
गठीला बदन, लाल आंखें,
यही कैदी की पहचान भला??
है तो इंसान फिर वो,
क्यों अपनों से अंजान भला।
बच्चे-बूढ़े डरे व सहमे,
कर किनारा सबको वहां से
डाक्टर से मेडिकल करवा लो,
चला इधर उधर वो भीड़ से।
क्यों अपराध किया उसने,
न डर और न खौफ था,
पूछने पर वो हंसने लगा,
मौत से भी बेखौफ था।
रोजी-रोटी के चक्कर में,
घूम रहा वो दर-बदर में,
कर लिया एक गुनाह उसने,
कैद की रोटी की डगर में।
ना नौकरी, ना रोटी,
सुन ली दुनिया की खरी खोटी,
गुनाह न करता मैं क्या करता,
खाने को कैद में ये रोटी।
बदनसीब वो किस्मत उसकी,
जो उसे पानी भी न पिला सकी,
पुलिस की गिरफ्त से भी न डरे वो,
और डंडे भी वो रूह को हिला न सकी।।
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