फ्रीडम आफ स्पीच

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FREEDOM OF SPEECH
       पूरन सिंह कार्की
POORAN SINGH KARKI
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शिक्षक, दार्शनिक,राजनयिक और राष्ट्रपति
डा०सर्वपल्ली राधाकृष्णन

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पश्चिमी दार्शनिकों में जो स्थान सुकरात, प्लेटो व अरस्तु का है वही स्थान आधुनिक भारत में महान शिक्षाविद व दार्शनिक पूर्व राष्ट्रपति डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन को प्राप्त है। मद्रास से  से 40 मील उत्तर पूर्व में तिरुत्तणी गाँव में 5 सितंबर 1888 को जन्मे डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का बचपन तिरुपति और तिरुताणी में बीता। स्वामी विवेकानंद के पत्रों और प्रथम  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर नायक वीर सावरकर की जीवनी का उन पर गहन प्रभाव पड़ा। मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के दौरान उन्होंने वेदांता पर शोध कार्य किया जिसका विषय था 'इथिक्स ऑफ वेदांता एंड इट्स ए मैटेफिजिकल प्रीसपोजिशन'। उन्होंने लिखा, "धार्मिक भावना को अपने आप में जीने के एक विवेकशील ढंग के रूप में स्थापित करना चाहिए।" उन्होंने शिक्षा को व्यवसाय के रूप में अपनाया। सन् 1909 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र विभाग में शिक्षक बने 1918 में मैसूर विश्वविद्यालय में धर्म शास्त्र के प्रोफेसर बने। 1931 से 1936 का समय उनके जीवनकाल का महत्वपूर्ण समय था इस दौरान वह वह आंध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने।इसके बाद 1936 से 1939 तक वह आक्सफोर्ड  विश्वविद्यालय में 'ईस्टर्न रिलीजंस एंड इथिक्स' के प्रोफेसर रहे। 1939 में ही उन्हें 'फैलो आँफ द ब्रिटिश एकेडमी' चुना गया।   स्वामी विवेकानंद के बाद पूर्व और पश्चिम के बीच सीधा दार्शनिक संबंध कायम हुआ तो वह डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा ही हुआ। महान व्यक्तित्व के धनी राधाकृष्णन 1939 से 1948 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रहे। राजनयिक की भूमिका भी उन्होंने बखूबी निभाई। 1949 से 1952 तक सोवियत संघ में राजदूत के रूप में अपनी सेवाएं दीं।1952 में उपराष्ट्रपति बने तो अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के द्वारा उन्होंने राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में उसकी गरिमा को और अधिक बढ़ाया।1962 में राष्ट्रपति बनने के बाद भी भारतीय वेशभूषा, भारतीय दर्शन के अनुरूप इस पद  की गरिमा को और ऊंचाई  के शिखर तक ले गये।अपने जीवन काल में उन्होंने अनेक बहुमूल्य साहित्य विश्व को दिया जिनमें उनकी दार्शनिक विचारधारा निहित है। 'इंडियन फिलासफी','द रेन आँफ रिलीजन इन कण्टेम्पोरेरी फिलासफी','हिन्दू व्यू आँफ लाइफ','फ्यूचर आँफ सिविलाइजेशन' तथा 'इंडियन रिलीजन' उनकी अमूल्य दार्शनिक किताबें हैं।उन्होंने हमेशा हिन्दुत्व के आधुनिक रूप के पक्ष में आवाज उठाई जो संसार के अन्य धर्मों को हिननदुत्व से मेल करा सके।17अप्रैल 1975 को उनका निधन हो गया।देश व दुनियां के लिए वह बहुत बड़ी दार्शनिक विरासत छोड़ गये। शिक्षक दिवस तभी यथार्थ में शिक्षक दिवस बन सकेगा जब आज की परिस्थितियों के अनुरूप उनके जीवन से प्रेरणा लेकर राष्ट्र शिक्षित, विवेकशील और प्रगतिशीलता की ओर आगे बढ़ने का साहस करे। शिक्षक समाज व देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करे। इस महान विभूति को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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बच्चा चोरी के शोर की अफवाहों में निर्दोषों पर हिंसा

बच्चा चोरी करने वाले गिरोहों के बारे में समाचार पत्रों और. सोशल मीडिया पर तेजी से खबरें वायरल हो रही हैं जिनमें पकड़े गए लोग या तो विक्षिप्त या अपने घरों से दूर दूसरे कश्बों में आकर रोजीरोटी कमाने के लिए बाहर निकले लोग थे।प्रश्न यह उठता है कि सिर्फ 'बच्चा चोर, शोर सुनते ही विवेकहीन भीड़ इकट्ठा हो कर  विना सोचे समझे  किसी अनजान व्यक्ति पर हिंसात्मक तरीक़े से क्यों टूट पड़ती है। भीडध यह नहीं देखती, सोचती है कि इसी प्रकार किसी अफवाह के चलते शक के तहत उनके परिवार का सदस्य भी तो किसी जगह अफवाहों के चलते हिंसा का शिकार बन सकता है।ऐसी घटनाओं को हिंसात्मक अंजाम देने  में सिर्फ विवेकहीन और बेवजह अशांति फैलाने वाली भीड़ का हाथ होता है।जो मामले को समझने, बेकसूर व कसूरवार को पहचानने, सुनने की बजाय उस पर पागलों की तरह टूट पड़ते हैं।ऐसी घटनाओं में अब तक कई लोग अपनी जान तक गवां चुके हैं मानवजीवन जिसे बचाने के लिए हम ऐड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं वे असामाजिक तत्वों के शिकार हो रहे हैं।निर्दोषों का जीवन लेने का किसी को भी अधिकार नहीं है ।इन अफवाहों और अफवाहजनित हिंसा से बचने का एक ही उपाय है कि बच्चाचोरी के नाम पर अफवाह फैलाने वालों पर कठोर कानूनी कार्रवाई हो।हत्या में शामिल भीड़ के खिलाफ एफ.आइ.आर.दर्ज कर उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कड़ी कार्रवाई की जाये यदि इस तरह की घटनाओं को समय रहते ना रोका गया तो इससे अराजकता का माहौल पैदा होगा।जनता को जागरूक होकर भीड़ का हिस्सा बनने से दूर रहना होगा।हो सके तो निर्दोषों  के बचाव में आगे आयें और ऐसे  व्यक्तियों को पुलिस को सौंपने की कोशिश करें।संदिग्ध व्यक्ति पर बिना पूरी जांच पड़ताल के हिंसक बन कर उतर जाना अपराध की श्रेणी में आता है।ऐसे में अपराधी प्रवृत्ति के लोग अवसर का लाभ उठाकर अपराध करने से नहीं चूकते।मनोविज्ञान कहता है कि विवेकहीन और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग जब  भीड़ से जुड़ते हैं तो वे भीड़ की ही भाषा बोलने लगते हैं।निर्दोष व्यक्ति की कोई सुनता ही नहीं है।इसलिए विवेक से काम लेकर भीड़ का हिस्सा कतई नहीं बनें।ऐसा करने से अवसर का लाभ उठाकर अशांति फैलाने वालों के हौसले पस्त हो जायेंगे और पुलिस को अपनी कार्रवाई करने में आसानी होगी।बहरहाल, ये समाज विरोधी तत्व समाज का शांत वातावरण भंग करना चाहते हैं और हिंसा को उकसाकर निर्दोषों की पिटाई व हत्या कर रहे हैं।अब समय आ गया है कानून अपने हाथ में लेकर ऐसे अमानवीय व घिनौने कार्यों को अंजाम देने वालों के साथ पुलिस सख्ती से पेश आये।सोशल मीडिया और भीड़  इकट्ठा करनेवालों पर निगरानी रखना बहुत जरुरी है।जनता किसी भी बातों में आकर भीड़ का हिस्सा बनने की बजाय अपनी बुद्धि और विवेक से काम ले और हो सके तो शरारती तत्वों की सूचना तुरंत पुलिस और मीडिया तक पहुंचायें। हर हालत में निर्दोषों और.बेगुनाहों को हिंसा का शिकार होने से बचाने में सहयोग दें।

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पूरन सिंह कार्की
(लेखक व पत्रकार) 05-09-2019
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साभार

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