जगत सागर बिष्ट
टिहरी जनपद की ऊँची पहाड़ियों जहाँ ट्रैकिंग के लिये पर्यटकों का मुख आकर्षण हैं, वहीं यहां के बुग्याल भी पर्यटकों का दिल जीतने को लालायित रहते हैं। यहाँ नैसर्गिक सौंदर्य के अलावा अनेक प्रकार की जड़ी बूटियां हैं जिनका समुचित उपयोग नही हो पा रहा है।
यहाँ के ताल व बुग्याल पूरे देश में प्रसिद्ध है। जिले में तालों व बुग्यालों की संख्या काफी अधिक है। यहां के ताल जहां पर्यटकों को रोमांचित करते है, वही बुग्याल आकर्षण का केन्द्र बने हुए है। इनमें से कुछ तो सड़कों के पास है, लेकिन अधिकांश सड़कों से दूर है। पूर्व काल से ही ताल व बुग्याल चिन्तन, मनन करने का स्थान रहे है। जिनका उल्लेख ग्रंथों में भी विभिन्न प्रसंगों में भी मिलता है। बुग्यालों की बात हो! और पंवाली कांठा का ज़िक्र न हो! ऐसा हो नहीं सकता। पुराणों में पंवाली कांठा की महिमा का वर्णन है। कहा जाता है की यहां आज भी आकाश मार्ग से परियां आती हैं। पंवाली जाकर लगता है कि हम स्वर्ग में विचरण कर रहे हैं। पूर्व काल से लेकर आज तक आकर्षण का केन्द्र रहे ताल व बुग्याल आज भी प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को आज भी उतना ही आकर्षित कर रहा है।
सरकार को चाहिये की इन पर्यटक स्थलों का चयन कर विश्व पर्यटक पटल पर रख कर इनका विकास किया जाये। जिससे अधिक से अधिक प्रकृति प्रेमी पर्यटकों की संख्या में इज़ाफा किया जा सके। जिससे देश व विदेश के पर्यटकों को इन प्राकृतिक स्थानों में आने का मौका मिल सकेगा और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। इस ओर प्रदेश सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।
जनपद के विभिन्न ताल व बुग्याल पर्यटन स्थल सडकों से दूर होने के बावजूद भी अपनी खूबसूरती के जरिए पर्यटकों को अपनी ओर खीच लाती है। यहां के कई ताल आज भी रहस्य बने हुए है। इन सभी को जानने के लिए हर साल काफी संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक यहां पहुंचे है। प्रकृति को यदि नज़दीक से देखना है तो यहां आकर बुग्याल और ताल का आनंद लिया जा सकता है।
जड़ी बूटी व ट्रैक के लिए प्रसिद्ध हैं, पंवाली कांठा बुग्याल - कई पर्यटन स्थल ऐसे है, जो शानदार ट्रैक व जड़ी-बूटी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहां का प्रसिद्ध पंवाली कांठा बुग्याल पर्यटकों का आकर्षण का केन्द्र हैं।
टिहरी जिले में खतलिंग ग्लेशियर पर लगभग 11500 फीट उचांई पर स्थित पंवाली कांठा बुग्याल अपनी दुर्लभ जड़ी - बूटियों और शानदार ट्रैक के लिए प्रसिद्ध है। यहां पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय टिहरी से घुत्तू तक सौ किलोमीटर की दूरी सड़क मार्ग और फिर 18 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। पिछले साल केन्द्र सरकार की ओर से यहां सर्वे करवाया गया था, जिसमें यहां लगातार भूस्खलन की बात सामने आई थी। इसी को देखते हुए विभागीय अधिकारी अब बुग्याल के दौरे की तैयारी कर रहे है। टिहरी वन प्रभाग का कहना है कि वहां पर चेक डैम या फिर सुरक्षा दीवार बनाकर संरक्षण के लिए प्रयास किए जायेंगे। यहां जो मानवीय गतिविधियाँ हो रही है, उन्हे ईकों फ्रेडली तरीके से संचालित किया जायेगा।
सहस्रताल देख पर्यटक हो जाते है अभिभूत
सहस्त्र ताल अनुपम सौन्दर्य वाला ताल है। इसे भगवान शिव का प्रतिरूप माना जाता है। जिले का सहस्रताल, महासरताल, मसूरी ताल काफी प्रसिद्ध है। इनमें से सहस्र ताल सबसे ऊँचा करीब 15 हजार फीट की उचांई पर है। यह सबसे बडा ताल है, जबकि इसके आस पास छोटे - छोटे ताल आज भी रहस्य बने है। बूढाकेदार या घुत्तू से होकर यहां तक पहुंचा जाता है। बूढाकेदार से पैदल मार्ग होते हुए सहस्रताल करीब 45 किलोमीटर दूर है, जो पहुचने में करीब तीन दिन का समय लगता है। पैदल व खच्चरों के माध्यम से यहां तक पहुंचा जाता है। यह पर्यटक स्थल भले ही दूर हो लेकिन यहां पहुंचने के बाद इन स्थानों की सुंदरता को देख पर्यटक अभिभूत हो जाते है। यहां पर शाम के समय सूरज छिपने का दृश्य देखने लायक होता है। यहां पर खाने के अलावा रहने के लिए टैंट आदि सामान पर्यटकों को खुद ले जाना पड़ता है।
महासरताल में दिखता है गहरा हरा और मटमैला रंग-घने जंगल के बीच स्थित प्रमुख तालों में से एक महासताल करीब साढे नौ हजार फीट की उचांई पर है, जो जिले के मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के लिए पिसवाड गांव से 5 किलोमीटर का पैदल मार्ग है। यहां पर आस-पास दो ताल है। यहां खास बात है कि इस ताल का रंग गहरा हरा है तो दूसरे ताल का मटमैला है। यह बात पर्यटकों को खासा आकर्षित करती है।
जिले के प्रमुख ताल व बुग्याल सहस्रताल, महासरताल, भीम ताल, जराल ताल, मसूर ताल, द्रोपदी ताल, पंवाली कांठा बुग्याल, कुश कल्याणी बुग्याल।
पर्यटक स्थल में पाई जाने वाली दुर्लभ जडी-बूटी
ब्रहमकमल, विरायता, महामैदा, बज्रदंती, वत्सनाथ, मीठा, अतीस, कुटकी, आर्चा, डोलू, सालम, मिश्री, कडवे सतवां, हतपंजा। बुग्यालों और तालों तक पैदल मार्ग के सुधारीकरण आदि को लेकर आने वाले प्रस्ताव पर पर्यटक विभाग आगे कार्यवाही करता है। क्षेत्र का कुछ स्थान वन विभाग के अंतर्गत भी आता है। जिससे विभिन्न कार्य करने का अधिकार वन विभाग के पास है। उत्तराखंड की धरती पौराणिक मान्यताओं, तीर्थों औऱ आधुनिक पर्यटन स्थलों के लिए जानी जाती है। सरकार को चाहिए कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं।
टिहरी जनपद की ऊँची पहाड़ियों जहाँ ट्रैकिंग के लिये पर्यटकों का मुख आकर्षण हैं, वहीं यहां के बुग्याल भी पर्यटकों का दिल जीतने को लालायित रहते हैं। यहाँ नैसर्गिक सौंदर्य के अलावा अनेक प्रकार की जड़ी बूटियां हैं जिनका समुचित उपयोग नही हो पा रहा है।
Source: Dream Mountain |
सरकार को चाहिये की इन पर्यटक स्थलों का चयन कर विश्व पर्यटक पटल पर रख कर इनका विकास किया जाये। जिससे अधिक से अधिक प्रकृति प्रेमी पर्यटकों की संख्या में इज़ाफा किया जा सके। जिससे देश व विदेश के पर्यटकों को इन प्राकृतिक स्थानों में आने का मौका मिल सकेगा और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। इस ओर प्रदेश सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।
जनपद के विभिन्न ताल व बुग्याल पर्यटन स्थल सडकों से दूर होने के बावजूद भी अपनी खूबसूरती के जरिए पर्यटकों को अपनी ओर खीच लाती है। यहां के कई ताल आज भी रहस्य बने हुए है। इन सभी को जानने के लिए हर साल काफी संख्या में देशी व विदेशी पर्यटक यहां पहुंचे है। प्रकृति को यदि नज़दीक से देखना है तो यहां आकर बुग्याल और ताल का आनंद लिया जा सकता है।
जड़ी बूटी व ट्रैक के लिए प्रसिद्ध हैं, पंवाली कांठा बुग्याल - कई पर्यटन स्थल ऐसे है, जो शानदार ट्रैक व जड़ी-बूटी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहां का प्रसिद्ध पंवाली कांठा बुग्याल पर्यटकों का आकर्षण का केन्द्र हैं।
टिहरी जिले में खतलिंग ग्लेशियर पर लगभग 11500 फीट उचांई पर स्थित पंवाली कांठा बुग्याल अपनी दुर्लभ जड़ी - बूटियों और शानदार ट्रैक के लिए प्रसिद्ध है। यहां पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय टिहरी से घुत्तू तक सौ किलोमीटर की दूरी सड़क मार्ग और फिर 18 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। पिछले साल केन्द्र सरकार की ओर से यहां सर्वे करवाया गया था, जिसमें यहां लगातार भूस्खलन की बात सामने आई थी। इसी को देखते हुए विभागीय अधिकारी अब बुग्याल के दौरे की तैयारी कर रहे है। टिहरी वन प्रभाग का कहना है कि वहां पर चेक डैम या फिर सुरक्षा दीवार बनाकर संरक्षण के लिए प्रयास किए जायेंगे। यहां जो मानवीय गतिविधियाँ हो रही है, उन्हे ईकों फ्रेडली तरीके से संचालित किया जायेगा।
सहस्रताल देख पर्यटक हो जाते है अभिभूत
सहस्त्र ताल अनुपम सौन्दर्य वाला ताल है। इसे भगवान शिव का प्रतिरूप माना जाता है। जिले का सहस्रताल, महासरताल, मसूरी ताल काफी प्रसिद्ध है। इनमें से सहस्र ताल सबसे ऊँचा करीब 15 हजार फीट की उचांई पर है। यह सबसे बडा ताल है, जबकि इसके आस पास छोटे - छोटे ताल आज भी रहस्य बने है। बूढाकेदार या घुत्तू से होकर यहां तक पहुंचा जाता है। बूढाकेदार से पैदल मार्ग होते हुए सहस्रताल करीब 45 किलोमीटर दूर है, जो पहुचने में करीब तीन दिन का समय लगता है। पैदल व खच्चरों के माध्यम से यहां तक पहुंचा जाता है। यह पर्यटक स्थल भले ही दूर हो लेकिन यहां पहुंचने के बाद इन स्थानों की सुंदरता को देख पर्यटक अभिभूत हो जाते है। यहां पर शाम के समय सूरज छिपने का दृश्य देखने लायक होता है। यहां पर खाने के अलावा रहने के लिए टैंट आदि सामान पर्यटकों को खुद ले जाना पड़ता है।
महासरताल में दिखता है गहरा हरा और मटमैला रंग-घने जंगल के बीच स्थित प्रमुख तालों में से एक महासताल करीब साढे नौ हजार फीट की उचांई पर है, जो जिले के मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के लिए पिसवाड गांव से 5 किलोमीटर का पैदल मार्ग है। यहां पर आस-पास दो ताल है। यहां खास बात है कि इस ताल का रंग गहरा हरा है तो दूसरे ताल का मटमैला है। यह बात पर्यटकों को खासा आकर्षित करती है।
जिले के प्रमुख ताल व बुग्याल सहस्रताल, महासरताल, भीम ताल, जराल ताल, मसूर ताल, द्रोपदी ताल, पंवाली कांठा बुग्याल, कुश कल्याणी बुग्याल।
पर्यटक स्थल में पाई जाने वाली दुर्लभ जडी-बूटी
ब्रहमकमल, विरायता, महामैदा, बज्रदंती, वत्सनाथ, मीठा, अतीस, कुटकी, आर्चा, डोलू, सालम, मिश्री, कडवे सतवां, हतपंजा। बुग्यालों और तालों तक पैदल मार्ग के सुधारीकरण आदि को लेकर आने वाले प्रस्ताव पर पर्यटक विभाग आगे कार्यवाही करता है। क्षेत्र का कुछ स्थान वन विभाग के अंतर्गत भी आता है। जिससे विभिन्न कार्य करने का अधिकार वन विभाग के पास है। उत्तराखंड की धरती पौराणिक मान्यताओं, तीर्थों औऱ आधुनिक पर्यटन स्थलों के लिए जानी जाती है। सरकार को चाहिए कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं।