राजनीति और लोण-लोट्टया
अभी अभी उत्तराखंड के पंचायत चुनाव समाप्त हुए हैं। अब जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख आदि के लिए 6, 7 नवंबर को चुनाव भी होना है। पंचायत चुनावों में प्रत्याशियों या उनके कार्यकर्ताओं ने जोर शोर से हर हथकण्डे अपनाए होंगे। पहाड़ के दूरदराज के इलाकों में स्थानीय स्तर पर जो छोटे चुनाव होते हैं उनमें सदियों से एक परम्परा चली आ रही है और वह है नमक-लोटा (ल्वाण-लोठया) परंपरा। इसके तहत लोटे में नमक डाल कर देवी देवताओं के समक्ष कसम दिलाई जाती है । जो नेता सबसे पहले गांव में आकर इस प्रक्रिया को कर लेता है तो फिर वह आस्वस्थ हो जाता है कि अब कोई माई का लाल मेरे वोट नही काट सकता। मैं मानता हूँ कि यह परंपरा कुछ ही प्रतिशत इलाकों में सही पर आज भी जारी है।
मैं मानता हूं कि वर्तमान में शिक्षा और जागरूकता के साथ उसका प्रचलन धीरे धीरे कम होता जा रहा हो, लेकिन विविधताओं के इस देश के कई हिस्सों में चुनावों में जीत हासिल करने के लिए प्रत्याशी या उनके कार्यकर्ता अनेक हथकण्डे अपनाते हैं। इनमें यह सबसे आसान और कम ख़र्चीला लगता है।
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