ग्राफ़िक एरा विवि: जल संचयन, संरक्षण और प्रबंधन विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला में मंथन

जल संरक्षण और प्रबंधन को लेकर बने ठोस नीति

गढ़ निनाद संवाददाता, देहरादून

  • जलवायु परिवर्तन से गोमुख हिमनद लगभग एक किलोमीटर पीछे खिसक गया
  • घटते भूजल स्तर को रिचार्ज करने के लिए वॉटर हार्वेस्टिंग की आवश्यकता
  • जलाशयों में आर्सेनिक जैसे खतरनाक तत्व मौजूद
  • भूमिगत जल के उपयोग से जन्मजात अपंगता और कैंसर जैसी बीमारियां
  • बढ़ते शहरीकरण में उभरती हुई तकनीक के रूप में वर्षा जल संचयन

ग्राफिक एरा डीम्ड विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग विभाग और भारतीय जल संसाधन सोसायटी (Indian Water Resources Society-IWRS) के छात्र अध्याय देहरादून द्वारा “उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में सस्टेनेबल वाटर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई। डॉ0 संजीव कुमार विभागाध्यक्ष, सिविल इंजीनियरिंग विभाग द्वारा कार्यशाला के विषय की उपयोगिता और उस पर चर्चा के महत्त्व के बारे प्रकाश डालकर कार्यक्रम की शुरुआत हुई। कार्यशाला के संबोधन में विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो0 (डॉ0) आर सी जोशी ने कहा कि धरती पर बढ़ रहे पानी की समस्या के कारण तीसरे विश्व युद्ध की भूमिका बन रही है। इसलिए हमें जल संरक्षण और उसके उचित प्रबंधन की ठोस रूपरेखा पर त्वरित गति से काम करना होगा। विश्वविद्यालय के प्रोवीसी डॉ0 एच एन नागराजा ने जल संरक्षण के विभिन्न पहलुओं के बारे में बता कर कार्यशाला के सफल होने की कामना की।

बढ़ते शहरीकरण और वर्षा जल संचयन

कार्यशाला के प्रथम तकनीकी सत्र में जल संसाधन विकास और प्रबंधन (Water Resources Development and Management) विभाग आईआईटी रुड़की के विशेषज्ञ डॉ0 दीपक खरे ने “जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन: सतत प्रबंधन के मुद्दे, चुनौतियाँ (Water Conservation & Rainwater Harvesting: Issues, Challenges & Opportunities for Sustainable Management-WRD&M)” ने बढ़ते शहरीकरण में उभरती हुई तकनीक के रूप में वर्षा जल संचयन पर जोर दिया। वर्षा जल संचयन पर कार्य कर रहे आइआइटी रुड़की के प्रोफेसर डॉ0 दीपक खरे ने घटते भूजल स्तर को रिचार्ज करने के लिए वॉटर हार्वेस्टिंग की आवश्यकता पर जोर दिया। डॉ0 खरे ने छात्र-छात्रओं को वर्षा जल संचयन की उपयोगिता और महत्व के विभिन्न मॉडलों को समझाया।

जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ डॉ0 दीपक कुमार ने “दूषित भू-जल के लिए इन-सीटू रेमी डिएशन टेक्नोलॉजी: एक अवलोकन (In-Situ Remediation Technology for Contaminated Ground water: An Overview)” विषय पर व्याख्या की। डॉ0 दीपक कुमार ने कहा कि घटते जल श्रोतों के कारण लोग अब धरती में काफी गहराई से जल का दोहन कर रहे हैं। जमीन के इस निचले स्तर पर स्थित जलाशयों में आर्सेनिक जैसे खतरनाक तत्व मौजूद हैं, जिससे कि इस आर्सेनिक-युक्त भूमिगत जल के उपयोग से समाज में जन्मजात अपंगता और कैंसर जैसी बीमारियां फैल रही हैं।

भारतीय सुदूर संवेदी संस्थान (आइआइआरएस) देहरादून के वैज्ञानिक डॉ0 भास्कर आर निकम ने बर्फ के आवरण और ग्लेशियरों के विश्लेषण में रिमोट सेंसिंग के महत्व को बताया बताया। डॉ0 भास्कर ने बताया कि जलवायु परिवर्तन से गोमुख हिमनद लगभग एक किलोमीटर पीछे खिसक गया है और हिमालय के सारे हिमनदों में बर्फ की मात्र कम होती जा रही है। इसको ध्यान में रखते हुए हमें भविष्य के लिए जल संरक्षण और प्रबंधन की योजना बनानी होगी। कार्यशाला में डॉ. भास्कर ने धरती के बड़े जलस्रोत हिमालय के हिमनदों के घटने की समस्या को मानचित्रों से समझाया।

अगले सत्र में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाइड्रोलॉजी (एनआइएच-National Institute of Hydrology), रुड़की के वैज्ञानिक डॉ0 एल एन ठकराल ने भारत सरकार के जल शक्ति अभियान के विभिन्न पहलूओं पर विस्तार से चर्चा की।

कार्यशाला के समापन्न सत्र डॉ0 संजीव कुमार ने कहा कि सिविल इंजीनियरिंग विभाग भविष्य में भी सामाजिक मुद्दों और समस्याओं जैसे विषय कार्यशाला आयोजन करता रहेगा।

कार्यशाला में नितिन मिश्रा, रमेश रावत, सुमन नैथानी व विभाग के सभी शिक्षक, भारतीय जल संसाधन सोसायटी के सदस्य व लगभग 100 छात्रों ने भाग लिया।

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