प्लास्टिक बना नासूर - जगत सागर बिष्ट

केन्द्र सरकारों व राज्य सरकारों ने राजस्व कमाने के लिए दिया बढावा - जगत सागर बिष्ट

देहरादून ब्यूरो

महात्मा गांधी के 150 वें जन्म दिन पर देश को वन यूज प्लास्टिक से देश को मुक्त करने का अभियान की शुरूवात 2 अक्टूबर से हो गयी है। जन भावना के तहत देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने जन आदोंलन के तहत योजना को लॉन्च किया है, जिसमें जनता भागीदारी करनें को तैयार है। यह कार्य पहले होना आवश्यक था। लेकिन पूर्व की सरकारों ने इस प्लास्टिक के उपयोग को महत्व दिया। जिस कारण देश के लोगों की आदतों में बदलाव आना शुरू हो गया। पहले घर से आदमी निकलता था, तो कन्धें पर थैला लेकर निकलता था। लेकिन आज आदमी खाली हाथ निकलता है। घर आते समय कचरे के रूप में प्लास्टिक घर लेकर आता है।

राजस्व कमाने के लिए सरकारों ने अपनी सुविधा के अनुसार इन उधोगों को फलने फूलने का पूरा मौका दिया। जिस कारण देश में नही विदेशों के वैज्ञानिकों, प्रकृतिक प्रेमी, समाज सुधारक व धार्मिक गुरू भी इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए चर्चा करने लगे है। सरकारों को ध्यान देना आवश्यक है, कि छोटी वस्तु से लेकर बड़े जहाज़ों के पैकिंग व मैकेनिकल कलपूर्जे सारे प्लास्टिक से ही बनाये जाते है। जो बाद में कुड़ें के ढ़ेर में तब्दील हो जाते हैं। रोज़ाना प्रयोग में आने वाली अधिकांश वस्तुओं में प्लास्टिक का प्रयोग अधिक होता है, जिसके प्रयोग से लोगों को घातक बिमारियों का सामना करना पड रहा है। दूसरा कभी न ख़त्म होने वाले कचरे का पहाड़ खड़े होने लगे है जो आज प्लास्टिक कई सालों से पर्यावरण के लिए नासूर बन रहा है। प्लास्टिक और पॉलीथीन की वजह से न केवल जमीन बल्कि पानी और हवा में भी जहर घुल गया । लेकिन अब प्लास्टिक के केमिकल से होने वाले दुष्प्रभाव से बचने के लिए दुनिया के कई देश प्लास्टिक और पॉलीथीन पर बैन लगा चुके है। बता दे कि 10 के दशकों पहले लोगों की सुविधा और सरकार ने राजस्व कमाने के लिए प्लास्टिक का आविष्कार किया था।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सालाना 56 लाख टन प्लास्टिक का कूडा बनाता है। दुनिया भर में जितना कूडा हर साल समुद्र में बहा दिया जाता हैं उसका 60 प्रतिशत हिस्सा भारत डालता है। प्रत्येक भारतीय रोज़ाना 15000 टन प्लास्टिक को कचरे के रूप में फेंक देते है। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण पानी में रहने वाले करोड़ों जीव - जंतुओं की मौत हो जाती है। भारत में प्लास्टिक का प्रवेश 60 के दशक के दशक में हुआ था। जिसका विरोध उस वक्त होना शुरू हो गया था। लेकिन सरकारों ने विरोध पर ध्यान न देते हुऐ प्लास्टिक का खूब उत्पादन करने के लिए बढावा दिया, जो आज संपूर्ण विश्व के लिए खतरा पैदा हो गया है।

प्रधानमंत्री का कहना है कि 2022 तक भारत को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त किया जायेगा। पहले दौर में 6 वस्तुओं के इस्तमाल पर रोक लगाने की बात सामने आयी है। उसमें प्लास्टिक कैरी बैग, थर्माकोल के कटलरी, आइटम्स, पाउच, प्लास्टिक 200 मिली की छोटी बोतलें जैसी वस्तुऐं शामिल की गयी है। प्लास्टिक व पॉलीथीन मुक्त करने के लिए सरकारों को संबंधित फैक्टीयों को बंद करने की आवश्यकता है, वही नागरिकों को भी अपनी आदतों में सुधार लाने से ही इस महामारी से छुटकारा पाना सम्भव है।

Share:

Search This Blog

Archives

Definition List

header ads