जम्मू- कश्मीर।
जम्मू- कश्मीर के लिए सदियों बाद आज एक ऐतिहासिक दिन आया है। जन्नत कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बन गए। कल गुरुवार को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून लागू हो गया। इसके साथ ही दोनों प्रदेशों में कई बड़े बदलाव भी हो गए। दोनों प्रदेशों में उप राज्यपालों ने कुर्सी संभाल ली है।
दोनों राज्यों में106 केंद्रीय कानून लागू हो गए हैं। साथ ही दोनों राज्यों में आधार, आरटीआई, आरटीई कानून लागू हो गए हैं। अब 153 ऐसे कानून जम्मू-कश्मीर के खत्म हो गए, जिन्हें राज्य के स्तर पर बनाया गया था। लेकिन 166 पुराने राज्य कानून और राज्यपाल कानून लागू रहेंगे।
जम्मू कश्मीर में पांच साल के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में निर्वाचित विधानसभा और मंत्रिपरिषद होगी। लेकिन लद्दाख का शासन उप राज्यपाल के जरिए सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा चलाया जाएगा। दोनों के पास साझा उच्च न्यायालय होगा। दोनों राज्यों के एडवोकेट जनरल अलग होंगे।जहां लद्दाख अधिकारियों की नियुक्ति के लिए यूपीएससी के दायरे में आएगा। वहीं जम्मू कश्मीर में राजपत्रित सेवाओं के लिए भर्ती एजेंसी के तौर पर लोक सेवा आयोग बना रहेगा। इसके अलावा दोनों प्रदेशों के सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार ही वेतन मिलेंगे।
अब वरिष्ठ अधिकारियों के सरकारी भवनों और वाहनों में केवल राष्ट्रीय ध्वज का उपयोग किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर में पहले के मुकाबले विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह देश के बाकी हिस्सों की तरह 5 साल का ही होगा। इसके अलावा विधानसभा में अनुसूचित जाति के साथ साथ अब अनुसूचित जनजाति के लिए भी सीटें आरक्षित होंगी। अब दूसरे राज्यों की तरह कुल सदस्य संख्या के 10% से ज्यादा मंत्री नहीं बनाए जा सकते हैं। जम्मू कश्मीर में अब विधान परिषद नहीं होगी। हालांकि राज्य से आने वाली लोकसभा और राज्यसभा की सीटों की संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।। अब जम्मू-कश्मीर से पांच और लद्दाख से एक लोकसभा सांसद ही चुन कर आएगा। जबकि जम्मू-कश्मीर से पहले की तरह ही राज्यसभा के 4 सांसद ही चुने जाएंगे।
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