"टी स्टॉल"
कल सुबह से लेकर दिन भर की भागम-भाग के बाद थका हारा संध्या के समय कहीं बाहर चाय की इच्छा जागी और चला गया "राहुल टी स्टाल" में। इस नाम से टी स्टाल कई जगह होंगे, लेकिन इस टी स्टाल का नाम ऐसे ही नहीं पड़ा,पूरी कहानी पढ़ने के बाद में बताऊंगा। इसका अपना ही रुतवा है होना भी चाहिए।
हुआ यूं कि कुछ साल पहले अपने युवराज जी अपने यहां आए थे। सारे सुरक्षा नियम कानून तोड़ उन्हें कमांडर में घूमने की सूझी। कमांडर में बैठ गए बोले चलो भइया । चल दिए, रास्ते में एकायक कमांडर रोकी, उतर गए। सामने होटल का बोर्ड देखा ,उन्हें भी चाय की तलब लगी थी। कहा भईया काली चाय बना दो, होटल वाला पहले तो सकपका गया कि यह कौन हैं । पहचाने से लग रहे हैं लेकिन यहां कैसे। जो मैं सोच रहा हूं तो उनका यहां कमांडर में बैठकर आना समझ से परे है।
बहरहाल होटल वाले ने काली चाय में तुलसी की पत्ती, पुदीना औऱ कागजी नीबूं का तड़का मार कर चाय दे दी। चाय पीने के बाद वह बड़े खुश हुए, कुछ बख्शीश भी दी होगी अपने वही नाम बार बार क्या लेना उनको कौन नहीं जानता, उनके नाम से तो अपने मोदी जी को रात में भी बुरे सपने आने लगते हैं, चल दिये।
उनको, किसी कार्यक्रम में भाग लेना था, बहुत देर भी हो गई थी, कार्यक्रम स्थल के अंदर चुनिंदा कार्यकर्ता ही थे जिनसे उनका संवाद होना था । लेकिन कार्यक्रम स्थल के बाहर उनको देखने को भारी भीड़ इक्कट्ठा थी। सुरक्षा मानकों को लेकर उनसे सीधा संवाद होने की कतई गुंजाइश नहीं थी। क्योंकि सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद थी, किसी को पुलिस वाले पास नहीं आने दे रहे थे। अपना युवराज आ रहा था तो लोगों में उत्साह और उल्लास लाज़मी था ।
ज्योंही वह आए ,सीधे हाल के अंदर घुस गए जहां चुनिंदा कार्यकर्ता सुबह से इंतजार कर रहे थे। संवाद हुआ और 1घन्टे में फुर्र हो गए । बाहर खड़े लोग देखते रह गए। मैं भी हैरान परेशान था,अपने को बहुत बड़ा पत्रकार मान रहा था कि आज तो इनका इंटरव्यू लूंगा, कल फ्रंट पेज की खबर बनेगी, सब धरा का धरा। रह गया। खैर खबर तो बनी पर दूसरी तरह की ,मजा नहीं आया। मेरे अन्य साथी भी निराश हो आक्रोशित हो गए । होना ही था उतनी दूर से इतना बड़ा आदमी यानी अपना युवराज आया और किसी से मिला भी नहीं।
मैं भी कहां से कहां पहुंच गया। बात हो रही कि मैं थक हारा " राहुल टी स्टाल" पहुंचा । चाय पी, मन में जिज्ञासा हुई की होटल वाले से पूछ ही लूं की अब होटल से यह "राहुल टी स्टाल" कैसे हो गया। तब जाके पता चला कि एक दिन अपने ….क्या नाम, अरे नाम तो आप क्या मोदी जी भी जानते हैं ,ने चाय पी थी, इसलिए इसका नाम उनके नाम पर रखा गया । मैंने भी चाय पी औऱ ऊपर वाले का शुक्र किया कि उन्होंने उसके बजाय '…...टी स्टाल' नही रखा। चलो देर आय दुरस्त आय।